Monday 22 July 2013

आशीष एवं आत्मीयता की सुगंध का झोंका मेरे जीवन में नया उजाला लाएगा


23 july ko apne 50ven janmdin par main aap sabhi mitron ko hardik naman karta hun aur jane-anjane jo bhi bhool mujhse aapke prati ab tak hui ho, uske liye vinamra kshmaprarthi hoon. saath hi jin logon ne mere sath vishwasghat athva dhokhadhadi karke mera dil dukhaya hai, unhen unki sabhi galtiyon ke liye kshma karta hun JAI HIND !
50th birth day of albela khatri

albela khatri's birth day

Thursday 18 July 2013

कुत्ते को कुत्ता कहने पर अगर ऐतराज़ है तो फिर कोई बताये कि कुत्ते के बच्चे को क्या कहें - डी ओ जी साहब का साहबजादा ?



धर्मेन्द्र जब कहते हैं,  "कुत्ते मैं तेरा ख़ून पी जाऊंगा" या "बसन्ती, इन कुत्तों के 

सामने मत नाचना"  तो किसी को  कोई तकलीफ़  नहीं होती, राजीव गाँधी जब 

राम जेठमलानी को कुत्ता कहते हैं तो किसी हरामखोर को  शर्म  नहीं आती  और 

तो और  पुरखों द्वारा बनाई गई कहावतों - कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती, 

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का, कुत्ते की मौत मरना, तेरे नाम का कुत्ता पालूं, 

कुत्ते को हड्डी डालना और  हाथी चलते रहते हैं कुत्ते भोंकते रहते हैं इत्यादि से भी 

किसी के  पिछवाड़े में  कोई काँटा नहीं चुभता  परन्तु  नरेन्द्र मोदी के मुंह से कुत्ता 

शब्द निकल गया तो  कुछ शरीफ़ लोगों की तशरीफ़ में बड़े बड़े गूमड़ उग आये ......

....है न हैरानी की बात .........


वे लोग कहते हैं - कुत्ते का नाम क्यों लिया ?  बकरी का ले लेते, बिल्ली का ले लेते . 


अरे भाई,  नरेन्द्र मोदी ने कुछ गलत नहीं कहा . जो कहा ठीक कहा . ये और कोई 

जाने या न जाने, मैं भली भान्ति जानता हूँ . और अगली पोस्ट में बताऊंगा भी 

लेकिन पहले मैं आप सब मित्रों की राय जानना चाहता  हूँ  कि  मोदी जी ने  बिल्ली 

और बकरी का नाम न  लेकर कुत्ते का नाम ही क्यों लिया .  आइये, फटाफट बताइए .....

 
नरेन्द्र मोदी द्वारा कुत्ते को कुत्ता कहने पर अगर  ऐतराज़ है तो 


फिर कोई बताये कि कुत्ते के बच्चे को क्या कहें - डी ओ जी साहब का 

साहबजादा ?


-अलबेला खत्री 

we love narendra modi

poem by albela khatri

श्री हिंगुलाज चालीसा shri hingulaj chalisa

Sunday 7 July 2013

प्रकृति के आँचल में अमृत के धारे हैं, नदी-नहरों में इसी दूध के फौव्वारे हैं


प्रकृति में मानव की माता का आभास है
प्रकृति में प्रभु के सृजन की सुवास है

प्रकृति के आँचल में अमृत के धारे हैं
नदी-नहरों में इसी दूध के फौव्वारे हैं

प्राकृतिक ममता की मीठी-मीठी छाँव में
झांझर सी बजती है पवन के पाँव में

छोटे बड़े ऊँचे नीचे सभी तुझे प्यारे माँ
हम सारे मानव तेरी आँखों के तारे माँ

भेद-भाव नहीं करती किसी के साथ रे
सभी के सरों पे तेरा एक जैसा हाथ रे

गैन्दे में गुलाब में चमेली में चिनार में
पीपल बबूल नीम आम देवदार में

पत्ते - पत्ते में भरा है रंग तेरे प्यार का
तेरे मुस्कुराने से है मौसम बहार का

झरनों में माता तेरी ममता का जल है
सागरों की लहरों में तेरी हलचल है

वादियों में माता तेरे रूप का नज़ारा है
कलियों का खिलखिलाना तेरा ही इशारा है

तूने जो दिया है वो दिया है बेहिसाब माँ
हुआ है न होगा कभी, तोहरा जवाब माँ

तेरी महिमा का मैया नहीं कोई पार रे
तेरी गोद में खेले हैं सारे अवतार रे

सोना चाँदी ताम्बा लोहा कांसी की तू खान माँ
हीरों- पन्नों का दिया है तूने वरदान माँ

तेरे ही क़रम से हैं सारे पकवान माँ
कैसे हम चुकाएंगे तेरे एहसान माँ

तेरी धानी चूनर की शान है निराली रे
दशों ही दिशाओं में फैली है हरियाली रे

केसर और चन्दन की देह में जो बन्द है
मैया तेरी काया की ही पावन सुगन्ध है

यीशु पे मोहम्मद पे मीरा पे कबीर पे
नानक पे बुद्ध पे दया पे महावीर पे

सभी महापुरुषों पे तेरे उपकार माँ
सभी ने पाया है तेरे आँचल का प्यार माँ

पन्छियों के चहचहाने में है तेरी आरती
भोर में हवाएं तेरा आँगन बुहारती

सभी के लबों पे माता तेरा गुणगान है
जगत जननी तू महान है महान है

वे जो तेरी काया पे कुल्हाडियाँ चलाते हैं
हरे भरे जंगलों को सहरा बनाते हैं

ऐसे शैतानों पे भी न आया तुझे क्रोध माँ
तूने नहीं किया किसी चोट का विरोध माँ

मद्धम पड़े न कभी आभा तेरे तन की
लगे न नज़र तुझे किसी दुश्मन की

मालिक से मांगते हैं यही दिन रात माँ
यूँ ही हँसती गाती रहे सारी कायनात माँ

चम्बे की तराइयों में तू ही मुस्कुराती है
हिमालय की चोटियों में तू ही खिलखिलाती है

तुझ जैसा जग में न दानी कोई दूजा रे
मैया तेरे चरणों की करें हम पूजा रे

बच्चे-बच्ची बूढे-बूढी हों या छोरे-छोरियां
सभी को सुनाई देती माता तेरी लोरियां

तेरे अधरों से कान्हा मुरली बजाता है
तुझे देखने से माता वो भी याद आता है

तुझ से ही जन्मे हैं ,तुझी में समायेंगे
तुझ से बिछुड़ के मानव कहाँ जायेंगे

तेरी गोद सा सहारा कहाँ कोई और माँ
तेरे बिना मानव को कहाँ कोई ठौर माँ

ग़ालिब की ग़ज़लें ,खैयाम की रुबाइयाँ
पद्य सूरदास के व तुलसी की चौपाइयां

तेरी प्रेरणा से ही तो रचे सारे ग्रन्थ हैं
तूने जगमगाया माता साहित्य का पन्थ है

मानव की मिट्टी में मिलाओ अब प्यार माँ
जल रहा है नफ़रतों में आज संसार माँ

-अलबेला खत्री





Saturday 6 July 2013

दो कोशिकाओं में से एक, शालिनी ने अलबेला खत्री को कलम का शेर बताया, आरती खत्री का क्रोध सातवें आसमान पर

पहले यह टिप्पणी देखिये  फिर मुझे अपना माथा पीटने को कहिये .

मैं ख़ुशी ख़ुशी पीट लूँगा .क्योंकि  अब  वो लोग भी मुझे अपनी भाषा

सुधारने का उपदेश देने लगे हैं जिन्होंने हिन्दी भाषा के वस्त्रहरण का

निशुल्क ठेका ले रखा है .


Shalini Kaushik has left a new comment on your post "मेरी जिस रचना से उन्हें खट्टी खट्टी डकारें आ रही...":


श्रीमान अलबेला खत्री
आप वैसे इस संबोधन के योग्य नहीं हैं क्योंकि आपकी पोस्ट आपको इस स्तर पर गिरा रही है आपसे उन्होंने क्या कहा केवल इतना कि आप अपनी पोस्ट हटाइए किन्तु कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग उन्होंने नहीं किया ,गलियां देनी सबको आती हैं क्योंकि ये इंडिया है और यहाँ गलियां हवा में बसी हैं किन्तु ये हमारे संस्कार हैं जो हमे उनका प्रयोग करने से रोकते हैं .आप अपनी भाषा में सुधार लाइए ताकि आप यहाँ सम्मानित ब्लोग्गर बने रह सकें .यद् रखिये गलियां देना हर भारतीय को अच्छी तरह से आता है मात्र कलम के शेर हैं आप और वही बने रहिये .

अब यह देखिये -

श्रीमान अलबेला खत्री
आप वैसे इस संबोधन के योग्य नहीं हैं क्योंकि आपकी पोस्ट आपको इस स्तर पर गिरा रही है आपसे उन्होंने क्या कहा केवल इतना कि आप अपनी पोस्ट हटाइए किन्तु कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग उन्होंने नहीं किया ,गलियां देनी सबको आती हैं क्योंकि ये इंडिया है और यहाँ गलियां हवा में बसी हैं किन्तु ये हमारे संस्कार हैं जो हमे उनका प्रयोग करने से रोकते हैं .आप अपनी भाषा में सुधार लाइए ताकि आप यहाँ सम्मानित ब्लोग्गर बने रह सकें .यद् रखिये गलियां देना हर भारतीय को अच्छी तरह से आता है मात्र कलम के शेर हैं आप और वही बने रहिये .


अब ऐसा है  आदरणीय शालिनी कौशिक जी, मुझे  भाषा में सुधार के लिए कहने

से पहले ज़रा  अपनी टिप्पणी बाँच लीजिये .........देखिये, कितनी आवारा भाषा

है आपकी .........समझ ही नहीं आया  मुझे कि वो कौन सी गलियां हैं जो हवा में बसी

हैं .....खैर  आपने देखी  होंगी मुझे क्या ...मुझे तो इस बात का मलाल है कि मैं

चाह कर भी आपकी भाषा नहीं सुधार सकता . क्योंकि  मुझे इतना समय नहीं

रहता कि मैं  बिना मांगे किसी को सलाह देता रहूँ .....


वैसे  कहना मत किसी से,  आपने जब मुझे कलम का शेर बताया तो मेरी बांछें

खिल गईं . परन्तु जैसे ही गुड्डू की माँ अर्थात आरती खत्री ने देखा कि  एक

परायी महिला मुझे आदमी न कह कर खूंख्वार जंगली जानवर कह रही है तो

उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया . शुक्र है  कि  आप  सूरत में नहीं

रहतीं वरना  आज वो आपके घर आ कर विरोध दर्ज कराती .........अब  मैं

आपको यह भी बता दूँ कि  आरती खत्री मेरी घर वाली है  और  मेरी रक्षा के लिए

सदा मेरी छाती पर सवार रहती है ..........हा हा हा



अन्तिम सत्य - 

भविष्य में यदि मेरी कोई पोस्ट पसन्द  न आये या आदतन/शौकिया  मेरा  विरोध करना

हो तो मेरे ब्लॉग पर आ कर कीजियेगा . मैं आपका विरोध शिरोधार्य करूँगा  और

आपकी बात का  पूरा सम्मान करूँगा . उदाहरण के लिए जैसे ही आपकी टिप्पणी

 मिली, मैंने  वो पोस्ट  हटा दी थी ..........परन्तु  मेरी पोस्ट का विरोध अगर  आप

मेरी ही पोस्ट अपने ब्लॉग पर लगा कर करेंगे  तो फिर मेरी भाषा और मेरी शैली

 .........बापरे बाप ...........वैसे कुछ नहीं रखा इन बातों  में, कोई ढंग की रचना

करो, ताकि लोगों  को आनंद मिल सके . लोगों को  रचना में रस है , वे रचना में

डूबना चाहते हैं इसलिए  रचना  ही उन्हें तृप्त  कर सकती है .ऐसी वैसी टिप्पणियों से

कोई पाठक खुश नहीं होता . उदाहरण के तौर  पर आप अपने ही ब्लॉग को देख

लीजिये, वहां पाठक भी आप और  टिप्पणी  करने वाले भी आप .........जबकि

मे्रे  ब्लॉग पर मेहमान लोग  आते हैं, पढ़ते हैं  और आनंद करके  जाते हैं .

जय हिन्द




Friday 5 July 2013

मेरी जिस रचना से उन्हें खट्टी खट्टी डकारें आ रही हैं, उसे खुद उन्होंने अपने ब्लॉग पर बड़ा सजा के लगाया हुआ है


लो कल्लो बात,  आप गुरूजी बेंगन खायें, दूजों को उपदेश सुनायें . नारी के नाम 

पर शब्दविलास करके टाईमपास करने वाली एक नारी [ ब्लॉग ] ने मेरी एक पोस्ट 

का विरोध करते हुए उसे हटाने  का निवेदन किया जिसे मैंने  तुरंत हटा दिया ........

क्योंकि मैं उसे वैसे भी हटाने वाला ही था . 



मेरी रचना  अन्य रचना की तरह घटिया और भौंडी हो, ये मैं भी नहीं चाहता था . 


लेकिन कई दिनों से कई लोग अपनी अपनी रचना इशरत जहाँ पर ही टिका रहे थे 

तो समय के साथ बहते हुए मैंने भी एक रचना  टिका ही दी .  मेरे  टिकाते ही कुछ 

लोगों को मिल गया मसाला  विरोध करने का ........लेकिन मेरे धुर विरोधी ये भूल 

गए कि  मेरी जिस रचना  से उन्हें  खट्टी खट्टी डकारें आ रही हैं, उसे खुद उन्होंने  

अपने ब्लॉग पर बड़ा सजा के लगाया हुआ है . वो  फालतू सी रचना मैंने तो मेरे ब्लॉग 

से हटा दी लेकिन उनके यहाँ अभी तक चमक रही है . 


मतलब  समझ गए न ..........हाँ ........ इनकी दुकान में खुद का सामान नहीं है ..लोगों 

का माल उठा उठा  कर लाते हैं और  बेचते हैं . इनके ब्लॉग पर प्रकाशित सामग्री का  

उपयोग कोई दूसरा नहीं कर सकता,लेकिन  औरों का माल  इनको  पिताजी  का घर 

दिखता  है ......टहलते हुए गए और उठा के ले आये ......दोगलेपन की पराकाष्ठा के 

चरमोत्कर्ष का चरम बिंदु तो यह है कि जिस थाली में खाते हैं  उसी में मूतते हैं


सार की बात 

यद्यपि  ब्लॉग जगत में कुछ  लोग बड़े भले हैं,  वो अपने आप से भी सन्तुष्ट हैं तथा 

दुनिया से भी . ऐसे लोग समाज के निर्माण का काम करते हैं . लेकिन  कुछ कुंठित  

तत्व ऐसे हैं  जो न  तो आत्मिक रूप से सन्तुष्ट हैं और न ही  देहिक रूप से ........

इसलिए वे  कौवों की तरह औरों  की चमड़ी में  चोंच मारने  में ही  आनंद समझते 

हैं . ये लोग मक्खियों जैसे  हैं सिर्फ़ गन्दगी पर आ कर बैठते  हैं और उसे जगह जगह  

बिखेर कर  समाज को बीमार करते हैं 


हे  ईश्वर अपनी ऐसी परजीवी  रचनाओं  को   अब तू ही सम्हाल ..हमारे पास तो अपनी 

लुगाई और टाबर को सम्हालने  का ही वक्त है , दुनिया का ठेका हमने  नहीं  ले रखा .

जय हिन्द




Wednesday 3 July 2013

कीड़े जानते हैं कि अगर वे कांग्रेसियों को पड़े तो उनके भी कीड़े पड़ेंगे



जो लोग कांग्रेसियों को कीड़े पड़ने की बात करते हैं  

वे किसी भरम में न रहें . कांग्रेसियों को कीड़े  पड़ने का  श्राप मत दीजिये . 

क्योंकि  मैं जानता  हूँ कि  नहीं पड़ेंगे . बिलकुल नहीं पड़ेंगे . 

किसी भी प्रजाति का एक भी कीड़ा 

किसी भी कांग्रेसी के किसी भी अंग में नहीं पड़ेगा .   

भरोसा न हो तो एक बार स्वयं कीड़ों  से ही पूछ कर देख लो . 

वो  मना  कर देंगे . आखिर उनका भी कोई स्टैण्डर्ड है !

कीड़े जानते हैं  कि अगर वे कांग्रेसियों को पड़े तो उनके  भी कीड़े पड़ेंगे .


जय हिन्द !