Thursday 12 April 2012

कुदरत हमारी बड़ी माँ जैसी है, परन्तु सहने की भी एक हद होती है यार !



प्यारे मित्रो  नमस्कार !

आइये, भूकंप  ग्रस्त इंडोनेशिया  के समस्त  आपदा पीड़ित लोगों के प्रति 

 हार्दिक संवेदनाएं  व्यक्त  करते हुए प्रभु से प्रार्थना  करें कि वह  कुदरत के 

इस प्रकोप  को सहने की  शक्ति  प्रदान करे. 


शुक्र है कि  जानमाल का ज्यादा नुकसान नहीं  हुआ परन्तु  यह हादसा 

दिल को दहला देने  वाला है भाई..........लगता है कुदरत अब  सृष्टि को ख़त्म 

करने पर आमादा हो गयी है  तभी तो  हर रोज़ कहीं न कहीं, कोई न कोई  

उत्पात  होता ही रहता है.  और हो भी क्यों नहीं,  मानव ने अपने स्वार्थ के  

चलते प्रकृति  का शोषण  क्या कम किया है ? 


काश ! अब भी मानव चेत जाए व कुदरत के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन बंद कर दे. 


कुदरत हमारी बड़ी माँ जैसी है . वह हमारा बुरा कभी नहीं करना चाहेगी 

परन्तु  सहने की  भी एक हद होती है यार ! 


कविवर  गोपालदास नीरज  का ये  मुक्तक  भले ही अन्य सन्दर्भ  में कहा गया 

 है  परन्तु आज के दौर में इस पोस्ट पर फिट बैठ रहा है :


छेड़ने पर मौन भी वाचाल  हो जाता है दोस्त !

टूटने पर आईना भी काल हो जाता है दोस्त ! 

मत करो ज्यादा हवन तुम आदमी के खून से 

जलके काला कोयला भी लाल हो जाता है दोस्त !


आज जयपुर  राजस्थान में हूँ  और  यहाँ की तपती  ज़मीं के  ताप से पूरी 

तरह तप हुआ हूँ  लेकिन मन में एक शीतल सा एहसास है कि मैं इंटरनेट 

 पर अपने दोस्तों और चाहने वालों के रूबरू हूँ . 


जय हिन्द !
 

1 comment:

  1. पर क्या करें अलबेलाजी माँ भी कभी कभी क्रोधित होना पडता है । हद होती है संतानों की परेशानी की। इतनी तकलीफ़ मां को देते हैं। अब देखिये जगह जगह जंगल काटकर कोंक्रिट के जंगल बनाये जा रहे हैं। पर्यावरण का भी तो ध्यान रखना है न !!!

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