Wednesday, 29 January 2014

सुदीप भोला, गोविन्द राठी, अलबेला खत्री व डॉ कार्तिक भद्रा की कविताओं ने महफ़िल लूट ली


 नगर पालिका पारडी का पहला पहला हिन्दी हास्यकवि सम्मेलन ख़ूब जमा

पहली पहली बार का मज़ा,,,,,,,,,,

कवियों को पहली पहली बार किसी जगह कवि-सम्मेलन करने का जो आनन्द  आता है वह अनूठा होता है, अविस्मरणीय होता है और आत्मतुष्टिदायक भी होता है . यह मेरा सौभाग्य व माँ शारदा की अनुकम्पा ही है कि ऐसा आनन्द लूटने का अवसर मुझे अनेक बार मिला है, बार-बार मिला है .  देश - विदेश में ऐसे कई संयोग बने जहाँ आयोजन करने वालों को यह भी पता नहीं था कि कवि सम्मेलन होता क्या है ? क्या कोई ड्रामा, नौटंकी, तमाशा या आर्केस्ट्रा जैसा होता है या शास्त्रीय संगीत जैसा ,,,,,,,,,,किष्किन्धा के गंगावती, कोलार गोल्ड फ़ील्ड, केरला के रमाडा, आंध्र के चिवपल्ली, कोंकण के एलोन इत्यादि जगहों पर तो आयोजकों ने विकल्प के तौर पर कवि गण के साथ साथ वहाँ के मिमिक्री या लोकल गायकों को भी बुला रखा था ताकि कवि सम्मेलन यदि न जमे तो दर्शकों को अन्य कलाओं से खुश किया जा सके - परन्तु  कमाल है कि सभी जगह शानदार आयोजन हुए और तीन  घंटों की जगह पांच पांच घंटे तक चले

खैर, ये सब तो अहिन्दी भाषी क्षेत्र थे, मज़ा तो ये है कि हिन्दी भाषी हरियाणा में दिल्ली के समीपवर्ती  सांपला में भी पहली पहली बार योगेन्द्र मौदगिल के संयोजन में हमने ही कवि सम्मेलन किया था जो आज हर साल होता है

इसी शृंखला में ताज़ा नाम जुड़ा है गुजरात में वलसाड के पास पारडी का ,,,,,,,गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी की शाम वहाँ नगर पालिका द्वारा पहली पहली बार एक भव्य हिन्दी हास्य कवि सम्मेलन हुआ जिसमें दर्शकों से खचाखच भरा पण्डाल देर रात तक ठहाकों से गूंजता रहा और नरेंद्र बंजारा के मंच संचालन में सुदीप भोला, गोविन्द राठी, अलबेला खत्री व डॉ कार्तिक भद्रा की कविताओं ने महफ़िल लूट ली

मुख्या मेहमान धारासभ्य कनु भाई एम देसाई सिर्फ़ 10 मिनट के लिए आये थे, परन्तु ऐसे बैठे कि चार घंटे तक हिले भी नहीं, इसी प्रकार पालिका प्रमुख शरद एम देसाई  तथा उप प्रमुख अनीता के पटेल समेत सभी माननीय पार्षद और अधिकारी भी  आखिर तक जमे रहे - कविगण का भव्य सत्कार भी किया गया और उनकी कला को वाहवाही भी खूब मिली --और क्या चाहिए ?

जय हिन्द !
अलबेला खत्री 




 

Thursday, 12 December 2013

जब कुत्सित और कामी पुरूष आपस में ही संतुष्टि प्राप्त कर लेंगे तो महिलाओं और कन्याओं पर होने वाले अनाचार में कमी आएगी



समलैंगिंगता में फ़ायदे ही फ़ायदे  :
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 सब के सब सम्भ्रांत किस्म के भले लोग हाथ धोकर, बल्कि नहा धो कर समलैंगिंगों  के पीछे पड़े हैं । जिससे अपना सूटकेस तक नहीं उठता, उसने भी लट्ठ उठा रखा है और ढूंढ रहा है समलैंगिंगों को .............क्यों भाई ? क्या बिगाड़ा है उन्होंने आपका ? क्या वो आपके साथ कुछ हरकत कर रहे हैं ? क्या वो आपको कोई तकलीफ़  पहुँचा रहे हैं ? नहीं न ?

तो जीने दो न उन को अपने हिसाब से ... तुम क्यों ज़बरदस्ती उनकी खीर में अपना चम्मच हिला रहे हो ? अरे आपको तो उनका सम्मान करना चाहिए...

नागरिक अभिनन्दन करना चाहिए ... और आप उनका अपमान कर रहे हैं । असल में आप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपकी समझदानियाँ छोटी हैं

जिनमें  अभी तक ये बात आई ही नहीं कि समलैंगिंगता  समाज के लिए अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है।  सम यानी some का मतलब होता है कम,

अब कोई लैंगिंग सम्बन्ध कम बनाए तो आपको क्या तकलीफ़  है ? कौआ अगर कूड़े में मुंह मारता है ,गिद्ध अगर मुर्दों का मांस नोंचते हैं या कोई सूअर गन्दगी में ऐश करता है तो क्या हमें तकलीफ़  होती है ? बिल्कुल नहीं होती, जो जैसे भाग्य लेकर आया है वैसा जीवन जीता है । तो फ़िर ये गे लोग जो नर्क अपने भाग्य में लिखा कर लाये हैं उससे हमें तकलीफ़  क्यों ?

___________समलैंगिंगता के फायदे :

१ जब कुत्सित और कामी पुरूष आपस में ही संतुष्टि प्राप्त कर लेंगे तो महिलाओं और कन्याओं पर होने वाले अनाचार में कमी आएगी । वे निश्चिंत हो कर घर से बाहर जा सकेंगी ...

२ सजातीय सम्बन्धों के कारण अनैच्छिक गर्भाधान और भ्रूण हत्या जैसे पाप भी कम होंगे । बल्कि ख़त्म ही हो जायेंगे ।

३ सबसे बड़ा खतरा आज हमें तेज़ी से बढती जनसँख्या का है । समलैंगिंगता से यह खतरा भी कम होगा, आबादी पर विराम लगेगा । और भी बहुत से फ़ायदे हैं जो मैं गिना सकता हूँ लेकिन डर ये है कि इनका इतना पक्ष लेते लेते कहीं मैं ख़ुद ही समलैंगिंग न हो जाऊं .....हा हा हा हा हा हा हा

समलैंगिंगों आगे बढो ..हम तुम्हारे साथ हैं .........हा हा हा हा हा

जय हिन्द
-अलबेला खत्री










Monday, 11 November 2013

उठो ! चलो मेरे साथ - मैं इस विसंगति को जड़ से मिटा दूंगा, ये मेरा दावा है और वादा भी ,,,,,,,



आदरणीय वरिष्ठ कवियो, प्यारे नवोदित कवि मित्रो, कवयित्री सखियो, कवि-सम्मेलनीय संयोजको, आयोजको एवं प्रायोजकों !

दिल की बात लिख रहा हूँ,  ज़रा ध्यान से बांचना … कुछ लोगों को लग रहा होगा कि मैं कोई भड़ास निकाल रहा हूँ.कुछ लोग प्रचारित कर रहे होंगे कि मैं पगला गया हूँ परन्तु  जो वाकई मुझे जानते हैं  वे समझ सकते हैं  कि मैं कोई भड़ासिया नहीं बल्कि भड़ासियों की भड़ास शांत करने वाला आयटम हूँ

मित्रो, पिछले तीन दशक से देख रहा हूँ कि कवि-सम्मेलनीय मंचों पर,  खासकर वहाँ जहाँ नोटों वाला लिफ़ाफ़ा बड़ा मिलता है, वही के वही मुट्ठी भर लोग चल रहे हैं कभी कोई नया बन्दा आता भी है तो उन्हीं द्वारा प्रमोट किया  सगा सम्बन्धी वगैरह = हद तो तब हो जाती है जब एक ही दिन में 2 प्रोग्राम टकरा रहे हों तो ये लोग तारीख बदलवा देते हैं ( कैसे बदलवाते है, ये बाद में बताऊंगा ) परन्तु किसी दूसरे के लिए रास्ता नहीं छोड़ते - मैं लाहनत भेजता हूँ ऐसी गन्दी और सड़ी हुई मानसिकता पर -

एक तरफ यही कवि मंच से चिल्लाते हैं कि राजनीति में जब तक नए, ऊर्जस्वित और प्रतिभावान लोग नहीं आयेंगे,  देश का भला नहीं होगा - दूसरी तरफ ये लोग ऐसे चिपके हैं मंच से कि नई  हवा आने ही नहीं देते - ये उन प्रतिभाओं का शोषण है जो हिंदी काव्यमंचों को अपनी सेवा देने में सक्षम भी हैं और समर्पित भी === लेकिन सबकी अपनी अपनी गिरोहबंदी है, देसी भाषा में सबकी चंडाल चौकड़ियाँ बनी हुई हैं जो बस अपने ही अपने सदस्य को माल दिलाने के लिए एकजुट रहते हैं

अरे देखो देखो देखो - गावस्कर, कपिल, सचिन, द्रविड़,सौरव बहुत  महान हैं लेकिन छोड़ दिया क्रिकेट नए लोगों को रास्ता देने के लिए और परिणाम ये निकला कि रोहित शर्मा और विराट कोहली जैसे लोगों ने भारत की क्रिकेट को और चमकदार बना दिया,,,,,,,,,,,,अभी भी सवेरा है, अभी सबकुछ ख़त्म नहीं हुआ है लेकिन ये आदरणीय वरिष्ठ लोग जब तक कवि-सम्मेलन को ख़त्म नहीं करा देंगे, मानने वाले नहीं - इसलिए मेरा खुला निमंत्रण है उन सभी प्रतिभावान नए कवियों को  कि अगर इस मंच को सुरक्षित और चमकदार रखने में  अपना योगदान दें चाहते हो तो आओ ,,,,,,,,,,,,,मेरे साथ आओ

ये मत सोचो कि मेरे पास कितने आयोजन हैं ,,ये मत सोचो कि मैं तो खुद लाफ्टरिया हूँ, ये देखो कि मेरे भीतर कितनी आग है  जो आप सबके संघर्ष को वहाँ तक ले जायेगी जहाँ सफलता आपका स्वागत करेगी ----- आने वाला समय हमारा है , अगर ऐसा सोचते रहोगे तो घाटे में रहोगे ,,,,उठो ! चलो मेरे साथ - मैं इस विसंगति को जड़ से मिटा दूंगा, ये मेरा दावा है और वादा भी ,,,,,,,

हमारे ख्यातनाम वरिष्ठ कवियों ने इस मंच को सफल बनाये रखा है और देश विदेश में हिन्दी की पताका को फहराया है इसलिए उनके योगदान के समक्ष हम सब नत मस्तक हैं - क्योंकि यदि इनमे प्रतिभा न होती तो ये मंच कभी का ख़त्म हो गया होता - नि: संदेह इनका सम्मान और सत्कार हमारा दायित्व है , परन्तु  इन्हें भी अपने दायित्व को समझना होगा

समझ जाएँ तो ठीक ,,,वर्ना समझाना पड़ेगा और तब हम भूल जायेंगे कि किसका क्या योगदान है, तब हमें सिर्फ ये याद रहेगा हमारी सीट पर कौन कब्ज़ा कर के बैठा है

जय हिन्द !

-अलबेला खत्री
hasyakavi albela khatri in action

hasyakavi albela khatri in action

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Saturday, 24 August 2013

बुरा न मानें तो हम सब हलवाई हैं और शौकिया नहीं व्यावसायिक हलवाई हैं



आज एक फेसबुक मित्र ने शिकायत की है मुझसे कि वोह मेरी हर फोटो को like करते हैं तो मैं उनकी हर फोटो like क्यों नहीं करता . मैंने हँस कर कहा, 'आज कर दूंगा' तो वे बोले - पहले मेरा प्रोफाइल फोटो like करो . ये बात मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि बहुत से मित्रों को शायद ऐसी ही शिकायत मुझसे हो सकती है या आपसे भी हो सकती है .

अब मेरा कहना ये है मित्रो ! कि like या comments इसलिए नहीं करना चाहिए कि कोई आपको कर रहा है बल्कि इसलिए करना चाहिए कि वो बात आपको पसंद आई . मैं अक्सर अपनी पोस्ट लगाने के बाद राउण्ड लगाता हूँ और जो भी पोस्ट मुझे अच्छी लगती है मैं उस पर like और comments करता हूँ . वैसे भी फेसबुक पर हर मित्र लेखक नहीं है और हर मित्र पाठक नहीं है . तो लेखक से आप like के बजाय अच्छे लेखन की अपेक्षा करें और पाठकगण मित्रों से अनुरोध है कि वे हर अच्छी पोस्ट को like करें या comments करें . भले ही उसका लेखक आपकी पोस्ट like करे या न करे .

ऐसा होगा तो इस मंच पर श्रेष्ठ रचनाओं को प्रोत्साहन मिलेगा और परस्पर स्पर्धा होगी लेखकों व पाठकों के बीच कि लेखक लिखता अच्छा है या पाठक वाहवाही अच्छी करता है . आओ, इस मंच का हम पूरा पूरा सदुपयोग करें और निरन्तर हाशिये पर जा रहे स्वस्थ लेखन को नवऊर्जा देने का साझा प्रयास करें .



प्रिय मित्रो, यह बात भी हमें याद रखनी चाहिए कि हर आदमी मोबाइल से फेसबुक अपडेट नहीं करता . कई ऐसे पाठक हैं जो सिर्फ कुछ देर के लिए यहाँ आते हैं . कुछ लोग साइबर कैफे में जा कर करते हैं और कुछ लोग केवल डेस्कटॉप से ही करते हैं . तो ज़ाहिर है कि उन सब के सामने पोस्ट जायेगी और वे पढेंगे तभी तो like करेंगे . औरों का क्या मैं खुद का उदाहरण देता हूँ कि जब मैं घर में होता हूँ सिर्फ़ तभी ब्लॉग और फेसबुक अपडेट करता हूँ या mail चैक करता हूँ . एक बार घर से निकल गया तो फिर जय राम जी की ..........ऐसे में कोई अपेक्षा करे कि मैंने उसे like नहीं किया तो यह परिस्थितिजन्य बाधा है . इसका कोई उपाय नहीं .

बुरा न मानें तो हम सब हलवाई हैं और शौकिया नहीं व्यावसायिक हलवाई हैं . हमारा दायित्व है उपभोक्ता को स्वस्थ और स्वादिष्ट मिठाई देना ..........वो खाने के बाद like करे न करे, उसकी मर्ज़ी .....हमारा काम ये नहीं कि हम सब हलवाई इक दूजे की दूकान पर जा कर नियमित रूप से उसकी मिठाइयों को like करें हा हा हा

 
जय हिन्द !
अलबेला खत्री