Saturday 24 August 2013

बुरा न मानें तो हम सब हलवाई हैं और शौकिया नहीं व्यावसायिक हलवाई हैं



आज एक फेसबुक मित्र ने शिकायत की है मुझसे कि वोह मेरी हर फोटो को like करते हैं तो मैं उनकी हर फोटो like क्यों नहीं करता . मैंने हँस कर कहा, 'आज कर दूंगा' तो वे बोले - पहले मेरा प्रोफाइल फोटो like करो . ये बात मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि बहुत से मित्रों को शायद ऐसी ही शिकायत मुझसे हो सकती है या आपसे भी हो सकती है .

अब मेरा कहना ये है मित्रो ! कि like या comments इसलिए नहीं करना चाहिए कि कोई आपको कर रहा है बल्कि इसलिए करना चाहिए कि वो बात आपको पसंद आई . मैं अक्सर अपनी पोस्ट लगाने के बाद राउण्ड लगाता हूँ और जो भी पोस्ट मुझे अच्छी लगती है मैं उस पर like और comments करता हूँ . वैसे भी फेसबुक पर हर मित्र लेखक नहीं है और हर मित्र पाठक नहीं है . तो लेखक से आप like के बजाय अच्छे लेखन की अपेक्षा करें और पाठकगण मित्रों से अनुरोध है कि वे हर अच्छी पोस्ट को like करें या comments करें . भले ही उसका लेखक आपकी पोस्ट like करे या न करे .

ऐसा होगा तो इस मंच पर श्रेष्ठ रचनाओं को प्रोत्साहन मिलेगा और परस्पर स्पर्धा होगी लेखकों व पाठकों के बीच कि लेखक लिखता अच्छा है या पाठक वाहवाही अच्छी करता है . आओ, इस मंच का हम पूरा पूरा सदुपयोग करें और निरन्तर हाशिये पर जा रहे स्वस्थ लेखन को नवऊर्जा देने का साझा प्रयास करें .



प्रिय मित्रो, यह बात भी हमें याद रखनी चाहिए कि हर आदमी मोबाइल से फेसबुक अपडेट नहीं करता . कई ऐसे पाठक हैं जो सिर्फ कुछ देर के लिए यहाँ आते हैं . कुछ लोग साइबर कैफे में जा कर करते हैं और कुछ लोग केवल डेस्कटॉप से ही करते हैं . तो ज़ाहिर है कि उन सब के सामने पोस्ट जायेगी और वे पढेंगे तभी तो like करेंगे . औरों का क्या मैं खुद का उदाहरण देता हूँ कि जब मैं घर में होता हूँ सिर्फ़ तभी ब्लॉग और फेसबुक अपडेट करता हूँ या mail चैक करता हूँ . एक बार घर से निकल गया तो फिर जय राम जी की ..........ऐसे में कोई अपेक्षा करे कि मैंने उसे like नहीं किया तो यह परिस्थितिजन्य बाधा है . इसका कोई उपाय नहीं .

बुरा न मानें तो हम सब हलवाई हैं और शौकिया नहीं व्यावसायिक हलवाई हैं . हमारा दायित्व है उपभोक्ता को स्वस्थ और स्वादिष्ट मिठाई देना ..........वो खाने के बाद like करे न करे, उसकी मर्ज़ी .....हमारा काम ये नहीं कि हम सब हलवाई इक दूजे की दूकान पर जा कर नियमित रूप से उसकी मिठाइयों को like करें हा हा हा

 
जय हिन्द !
अलबेला खत्री




Sunday 11 August 2013

चुपचाप पी लो जैसे अडवानी जी अपने आंसू पी रहे हैं


आज सुबह सुबह जैसे मैंने प्याला हाथ में लिया तो चाय का रंग कुछ 

फीका सा लगा . मैंने गुड्डू की माँ से पूछा - क्या बात है आज चाय पत्ती 

 बहुत कम डाली है चाय में ..एक दम रंगहीन सी दिख रही है मनमोहन 

सिंह की तरह ... तो वो बोली - आज चाय नहीं मसाला दूध दिया है . 

चुपचाप पी लो जैसे अडवानी जी अपने आंसू पी रहे हैं . 


मैंने कहा दूध क्यों, चाय क्यों नहीं ? वो बोली -आज आपका त्यौहार है दूध 


पीने वाला . मैंने पूछा मेरा कौन सा त्यौहार ? बोली नाग पंचमी ....हा हा हा 


जय हिन्द !