Saturday, 6 July 2013

दो कोशिकाओं में से एक, शालिनी ने अलबेला खत्री को कलम का शेर बताया, आरती खत्री का क्रोध सातवें आसमान पर

पहले यह टिप्पणी देखिये  फिर मुझे अपना माथा पीटने को कहिये .

मैं ख़ुशी ख़ुशी पीट लूँगा .क्योंकि  अब  वो लोग भी मुझे अपनी भाषा

सुधारने का उपदेश देने लगे हैं जिन्होंने हिन्दी भाषा के वस्त्रहरण का

निशुल्क ठेका ले रखा है .


Shalini Kaushik has left a new comment on your post "मेरी जिस रचना से उन्हें खट्टी खट्टी डकारें आ रही...":


श्रीमान अलबेला खत्री
आप वैसे इस संबोधन के योग्य नहीं हैं क्योंकि आपकी पोस्ट आपको इस स्तर पर गिरा रही है आपसे उन्होंने क्या कहा केवल इतना कि आप अपनी पोस्ट हटाइए किन्तु कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग उन्होंने नहीं किया ,गलियां देनी सबको आती हैं क्योंकि ये इंडिया है और यहाँ गलियां हवा में बसी हैं किन्तु ये हमारे संस्कार हैं जो हमे उनका प्रयोग करने से रोकते हैं .आप अपनी भाषा में सुधार लाइए ताकि आप यहाँ सम्मानित ब्लोग्गर बने रह सकें .यद् रखिये गलियां देना हर भारतीय को अच्छी तरह से आता है मात्र कलम के शेर हैं आप और वही बने रहिये .

अब यह देखिये -

श्रीमान अलबेला खत्री
आप वैसे इस संबोधन के योग्य नहीं हैं क्योंकि आपकी पोस्ट आपको इस स्तर पर गिरा रही है आपसे उन्होंने क्या कहा केवल इतना कि आप अपनी पोस्ट हटाइए किन्तु कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग उन्होंने नहीं किया ,गलियां देनी सबको आती हैं क्योंकि ये इंडिया है और यहाँ गलियां हवा में बसी हैं किन्तु ये हमारे संस्कार हैं जो हमे उनका प्रयोग करने से रोकते हैं .आप अपनी भाषा में सुधार लाइए ताकि आप यहाँ सम्मानित ब्लोग्गर बने रह सकें .यद् रखिये गलियां देना हर भारतीय को अच्छी तरह से आता है मात्र कलम के शेर हैं आप और वही बने रहिये .


अब ऐसा है  आदरणीय शालिनी कौशिक जी, मुझे  भाषा में सुधार के लिए कहने

से पहले ज़रा  अपनी टिप्पणी बाँच लीजिये .........देखिये, कितनी आवारा भाषा

है आपकी .........समझ ही नहीं आया  मुझे कि वो कौन सी गलियां हैं जो हवा में बसी

हैं .....खैर  आपने देखी  होंगी मुझे क्या ...मुझे तो इस बात का मलाल है कि मैं

चाह कर भी आपकी भाषा नहीं सुधार सकता . क्योंकि  मुझे इतना समय नहीं

रहता कि मैं  बिना मांगे किसी को सलाह देता रहूँ .....


वैसे  कहना मत किसी से,  आपने जब मुझे कलम का शेर बताया तो मेरी बांछें

खिल गईं . परन्तु जैसे ही गुड्डू की माँ अर्थात आरती खत्री ने देखा कि  एक

परायी महिला मुझे आदमी न कह कर खूंख्वार जंगली जानवर कह रही है तो

उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया . शुक्र है  कि  आप  सूरत में नहीं

रहतीं वरना  आज वो आपके घर आ कर विरोध दर्ज कराती .........अब  मैं

आपको यह भी बता दूँ कि  आरती खत्री मेरी घर वाली है  और  मेरी रक्षा के लिए

सदा मेरी छाती पर सवार रहती है ..........हा हा हा



अन्तिम सत्य - 

भविष्य में यदि मेरी कोई पोस्ट पसन्द  न आये या आदतन/शौकिया  मेरा  विरोध करना

हो तो मेरे ब्लॉग पर आ कर कीजियेगा . मैं आपका विरोध शिरोधार्य करूँगा  और

आपकी बात का  पूरा सम्मान करूँगा . उदाहरण के लिए जैसे ही आपकी टिप्पणी

 मिली, मैंने  वो पोस्ट  हटा दी थी ..........परन्तु  मेरी पोस्ट का विरोध अगर  आप

मेरी ही पोस्ट अपने ब्लॉग पर लगा कर करेंगे  तो फिर मेरी भाषा और मेरी शैली

 .........बापरे बाप ...........वैसे कुछ नहीं रखा इन बातों  में, कोई ढंग की रचना

करो, ताकि लोगों  को आनंद मिल सके . लोगों को  रचना में रस है , वे रचना में

डूबना चाहते हैं इसलिए  रचना  ही उन्हें तृप्त  कर सकती है .ऐसी वैसी टिप्पणियों से

कोई पाठक खुश नहीं होता . उदाहरण के तौर  पर आप अपने ही ब्लॉग को देख

लीजिये, वहां पाठक भी आप और  टिप्पणी  करने वाले भी आप .........जबकि

मे्रे  ब्लॉग पर मेहमान लोग  आते हैं, पढ़ते हैं  और आनंद करके  जाते हैं .

जय हिन्द




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